जीवन भी ऐसा ही है || Hindi Poem in Life 2021
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*जीवन ऐसा अनगढ़ पत्थर है जिस पर तुमने छेनी नहीं उठाई, मूर्ति प्रकटे तो कैसे प्रकटे! संन्यास इस पत्थर के साथ संघर्ष है। इस पत्थर में जो—जो व्यर्थ है, वह छाटकर अलग कर देना है, और जो—जो सार्थक है, उसे प्रकट होने देना है। पत्थर ही तो मूर्ति बन जाता है, अनगढ़ पत्थर मूर्ति बन जाता है।*
*माइकल एंजेलो एक पत्थर वाले की दुकान के पास से गुजरता था, उसने दुकान के बाहर दूसरी तरफ, राह की दूसरी तरफ एक बड़ी संगमरमर की अनगढ़ चट्टान पड़ी देखी। वह अंदर गया और दुकान के मालिक से उसने कहा कि वह चट्टान मैं खरीद लेना चाहता हूं। मालिक ने कहा वह चट्टान बेचने का सवाल ही नहीं है, तुम ऐसे ही ले जाओ, क्योंकि वर्षो हो गए, वह बिकती ही नहीं है। हमने उसे इसीलिए सड़क के उस तरफ डाल दिया है कि जिसकी मर्जी हो, ले जाए। दुकान में जगह भी नहीं है। वह चट्टान बड़ी अनगढ़ है, उसका तुम करोगे क्या?*
*माइकल एंजेलो ने कहा—वह मैं फिर समझ लूंगा, हम ले जाते हैं। दुकानदार ने कहा— धन्यवाद तुम्हारा, क्योंकि वह चट्टान नाहक जगह घेरे है, उसकी जगह हम कुछ और सामान रख सकेगे।*
*वर्षो बाद माइकल एंजेलो ने उस दुकानदार को अपने घर निमंत्रण दिया, भोजन पर बुलाया और कहा कि एक मूर्ति मेरी बनकर तैयार हुई है, देख लो। वह उस मूर्ति को देखने गया, ऐसी मूर्ति उसने देखी नहीं थी।*
*ऐसी मूर्ति पृथ्वी पर दूसरी है भी नहीं। मरियम की गोद में सूली से उतारे गए जीसस की मूर्ति है। अभी—अभी सूली से उतरे हैं, अभी—अभी खून टपकता है, अभी खून गर्म है, जीसस की लाश उनकी मां मरियम के हाथों में है, इस मूर्ति को उसने खोदा है। अवाक खड़ा रह गया दुकानदार। उसने बहुत मूर्तियां देखी थीं बनते, जीवनभर संगमरमर का ही काम किया था, ऐसी मूर्ति नहीं देखी थी, उसने कहा—यह पत्थर तुमने कहा से पाया? यह पत्थर बहुमूल्य है। ऐसा पत्थर मैंने नहीं देखा। माइकल एंजेलो हंसा, उसने कहा यह वही पत्थर है जो तुमने सड़क के दूसरी तरफ फेंक दिया था और जिसे मैं मुफ्त उठा लाया था।*
*दुकानदार तो मान ही न सका कि यह वही पत्थर है! इससे ऐसी मूर्ति प्रकटी। तुम कैसे कल्पना कर सके उस अनगढ़ बेहूदे पत्थर को देखकर कि यह मूर्ति इसमें से निकल सकेगी? माइकल एंजेलो ने कहा—मैंने नहीं देखा, मैं तो रास्ते से गुजरता था, क्राइस्ट ने इस पत्थर के भीतर से मुझे आवाज दी कि भई सुन, मुझे इससे मुक्त कर, मुझे इस पत्थर में से निकाल, इसमें रहे मुझे बहुत दिन हो गए।*
जीवन भी ऐसा ही है || Hindi Poem in Life 2021
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*वही पुकार सुनकर मैं यह पत्थर ले आया। इसमें जो—जो व्यर्थ था वह अलग कर दिया है, जो—जो सार्थक है वह प्रकट हो गया। मैंने मूर्ति बनाई नहीं, सिर्फ व्यर्थ को छाटकर अलग किया है।*
*जीवन भी ऐसा ही है।*
*मूर्ति तो तुम्हारे भीतर परमात्मा की है ही, पुकार ही रही है, वही मूर्ति पुकारी है कि अब आनन्द ले लो। लेकिन कुछ अनगढ़ पत्थर में कुछ कोने हैं, व्यर्थ का कचरा—कूड़ा है, वह सब छाटना है।*
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