इंतज़ार है अब उसको जान गवाने का ||
Hindi Poetry on Covid-19
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Hindi Poetry on Covid-19 |
पैसा नहीं है अनाज ख़रीद के लाने का
अब चाहे भूख से हो या बीमारी से
इंतज़ार है अब उसको जान गवाने का ।
फेला है ज़हर अब हवा में
सांस ख़रीद के आती है ।
किसी नन्हे शिशु के कपड़ों के भांति ही
यह विपदा अपना रंग बदल जाती है ।
हरा, काला , सफेद और अब पीला
मौत का कारण है अब रंगीला ।
हर और से बस मौत की ख़बर ही आती है ।
हमेशा के तरह इस बार भी सरकार बेबस ही नज़र आती है ।
पेड़ों पे ज़िम्मा है लाशों को दहकाने का
लकड़ी खरीदने की औकात नहीं उसकी
आखिरी रास्ता है बस गंगा किनारे दफनाने का ।
अब क्योंकि पैसा नहीं है अनाज खरीद के लाने का
चाहे भूख से हो या बीमारी से
इंतज़ार है अब उसको जान गवाने का ।
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इंतज़ार है अब उसको जान गवाने का ||
Covid-19 Hindi Poetry
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